अखबार में नाम

गुरूदास की दिली इच्छा थी कि उसका नाम अख़बार के पन्ने की शोभा बढाए। जब वह किसी का नाम अख़बार के पन्ने पर देखता उसके मुंह से एक आह सी निकलती थी - आखिर वो क्यों नहीं था वहां पर! अनाज की बोरी में से गिरे हुए एक दाने की तरह होकर रह गया था वो। जहां कोई पहचान नहीं थी उसकी। अपनी पहचान बनाने के लिए बस दिवाना था वो।



 चौबिसों घंटे उसके जेहन में बस एक ही बात चलते रहती थी, किसी भी तरह से एक बार अखबार के पन्नों पर उसका नाम आ जाए। नाम तो खैर, उसका आ गया, पर उस नाम ने उसे नाम ना देकर बदनाम ही किया। दोस्तों वर्षों पहले लब्धप्रतिष्ठित कथाकार यशपाल की लिखी हुई ' अखबार में नाम ' कहानी पढ़ी थी। शायद उस वक्त अपनी सोच का दायरा इतना बड़ा नहीं था कि इस बारे में बहुत कुछ सोच पाते। 

आज़ जब चलचित्र की तरह पुरानी बातें  सामने पर्दे पर नजर आती हैं, तो समझ आती है क्या खोया और क्या पाया। संकीर्ण दायरे से, अब हम कह सकते हैं बाहर निकल आए हैं। चीज़ों को देखने और समझने का नजरिया जो बदल गया है।

कल एक गुरूदास था जो एक प्रतीक वैसे कईयों का जो अपने आप को लाईम लाइट में देखना पसंद करते थे। आज की स्थिति में देखें तब आप पाएंगे कई गुरूदास हैं। कल गुरूदास के समय में अगर सोशल मीडिया होता तो शायद उसे अपने नाम को शोहरत दिलाने में , उसे मशहूर करने में इतनी जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती। आभासी तौर पर इतने लाइक्स आते कि बिचारा संतुष्ट रहता।

सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्म आपके लिए पलक पांवड़े बिछाए रहते। अरे! कोई तो आओ और हमारे साथ कदमताल करो। हर व्यक्ति पर एक पागलपन सा सवार है येन केन प्रकारेण मशहूर होने का। जान जोखिम में डालकर रील बनाईं जा रही हैं। आए दिन अखबारों और समाचार चैनलों के माध्यम से खबरें आ रही हैं, जिंदगी को दरकिनार कर सेल्फी ली जा रही है। घटनाएं हो रही हैं, पर लोगों के दिलों दिमाग से मशहूर होने का भूत नहीं उतर रहा है। रेलवे ट्रैक पर आए दिन सेल्फी के चक्कर में लोग बाग अपनी जान गंवा रहे हैं। 

अभी हाल में ही एक घटना हुई है कानपुर के पास उन्नाव  में जहां लखनऊ के रहने वाले एक बड़े अधिकारी जो अपने दोस्तों के साथ गंगा स्नान के लिए गए थे, उनकी जान चली गई महज़ इस कारण से कि वो गंगा स्नान के दौरान सेल्फी लेने के लिए गंगा में इतना आगे बढ़ गए जहां गंगा की तेज धार ने उन्हें अपने आगोश में ले लिया। एक बहुत ही दुःखद घटना थी यह।

 जिंदगी बड़ी ही खूबसूरत नियामत है मेरे दोस्त। इसे यूं ही गंवाया नहीं करते। आपकी ज़िन्दगी आपके साथ ही साथ आपके कई अपनों के लिए भी मायने रखती है। आप भला यूं उसे इतने हल्के में कैसे ले सकते हैं।

आए दिन चौक चौराहे या फिर सार्वजनिक स्थलों पर लड़के और लड़कियां कुछ भी अनाप-शनाप तरीके से रील बना कर सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं। पता नहीं क्या हो गया है इन्हें। मशहूर होने की बड़ी जल्दी है इन्हें। शार्टकट तरीके से मशहूर होना चाहते हैं।

 दरअसल यह एक सिंड्रोम है अपने आप को दुनिया से अलग दिखाने और दिखने का। इस फिराक में दहलीज लांघते चले जा रहे हैं। परिणति फिर वही गुरूदास वाली होनी है। आप मशहूर तो होंगे। सोशल मीडिया आपको मशहूर तो कर देगी, पर आप सोचने के लिए मजबूर हो जाएंगे आखिर इस शोहरत के मायने क्या हैं। किसी भी चीज का कोई शार्टकट नहीं होता है। हर चीज पकने के लिए एक तय समय लेती है। एक तय समय के बाद ही चीजें मैच्योर होती हैं तो मेरे दोस्त वक्त का तकाजा है चीज़ों को मैच्योर होने दें। जल्दबाजी ना करें।

✒ मनीश वर्मा ' मनु '




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