बिहार सरकार ने राज्य में जातीय सर्वेक्षण कराने के बाद सर्वेक्षण के आधार पर आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया था। इसके विरुद्ध पटना उच्च न्यायालय में अरवल निवासी वरिष्ठ पत्रकार मोहन कुमार ने एक याचिका दायर कराया था।
उक्त याचिका पर वृहस्पतिवार को फैसला देते हुए मुख्य न्यायाधीश हरीश कुमार ने बढ़ाए गए 15 प्रतिशत आरक्षण की वैधता को खारिज कर दिया है।
वरिष्ठ पत्रकार मोहन कुमार ने उक्त जानकारी देते हुए बताया कि याचिका संख्या सीडब्लूजेसी/18007/2023 पर न्यायालय ने सुनवाई करने के बाद सोमवार कोे अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
उक्त याचिका में, राज्य सरकार के सरकारी नौकरियों एवं उच्च शिक्षा में प्रवेश के लिए आरक्षण कानून में संशोधन कर 50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा को बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया गया था। उसके विरुद्ध यह याचिका दायर कर आरक्षण संशोधन की संवैधानिक वैधता कोे चुनौती दी गई थी।
इस याचिका पर सुनवाई के बाद पटना उच्च न्यायालय ने 15 प्रतिशत आरक्षण की वैधता को खारिज कर दिया है। इस निर्णय से बिहार की नीतीश सरकार को जबर्दस्त झटका लगा है।
मोहन कुमार ने कहा कि बिहार सरकार के 21 नवंबर 2023 को संशोधित कानून को पटना उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर कर चुनौती दी गई थी। इस आरक्षण कानून में एससी, एसटी, इबीसी व अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की अधिकतम सीमा को बढ़ाकर पैंसठ प्रतिशत कर दिया गया था।
ऐसा करने से सामान्य श्रेणी के लिए मात्र 35 प्रतिशत पद शेष रह गया था और इसमें भी 10 प्रतिशत इडब्लूएस आरक्षण शामिल था।
मेरे वरीय अधिवक्ता दीनू कुमार ने अदालत के समक्ष दमदार तरीके से मेरे पक्ष को रखते हुए दलील दी कि जाति आधारित सर्वेक्षण के बाद जातियों के आनुपातिक आधार पर आरक्षण का निर्णय राज्य सरकार द्वारा लिया गया है, न कि सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व के आधार पर।
सरकार के सर्वेक्षण में यह तथ्य स्पष्ट है कि कई पिछड़ी जातियों का सरकारी सेवाओं में अधिक प्रतिनिधित्व है। इसलिए इस बिंदुओं पर माननीय न्यायालय भारतीय संविधान की धारा 14 और धारा 15(6)(b) के तहत नए आरक्षण नियम को रद्द करने पर विचार किया जाय।हमारे अन्य आर्टिकल जो पाठकों को बहुत पसंद आये। आप भी पढ़े !
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