रूद्राक्ष

 पृथ्वी लोक पर उसका समय अभी पूरा नहीं हुआ था। धर्मराज की सूची में भी उसका नाम शामिल नहीं था। एकदम से अप्रत्याशित, अचानक से हवा का एक तेज झोंका आता है, और फिर एकबारगी तो ऐसा लगता है, मानो सब कुछ ख़त्म। 



अरे! कुछ देर पहले तक तो सब कुछ ठीक-ठाक था। अचानक से ऐसा क्या हो गया ? बस इसी का नाम तो ज़िन्दगी है। पल भर में सब कुछ बदल जाता है। ज़िन्दगी अचानक से यू टर्न ले लेती है और हम बस देखते रह जाते हैं।

अहाते में शान से खड़ा, हमारी धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा, हम सबों की आस्था का प्रतीक रूद्राक्ष का वृक्ष था वो। कुछ ही क्षण पहले की तो बात है। बिल्कुल हट्टा-कट्टा और स्वस्थ। हवा के झोंकों के साथ अठखेलियां करता हुआ। अचानक से मनु, हवा के एक तेज़ झोंके ने सब कुछ बदल दिया।

 सारे समीकरण बदल से गए। शरीर का ऊपरी हिस्सा हवा के झोंके के साथ भरभरा कर गिर पड़ा। पर , बात इतनी सी तो थी नहीं। रही सही कसर हम इंसानों ने पूरी कर दी। उसकी सांसें चल रही थीं। आंखों की पुतलियों में भी थोड़ी जान मालूम पड़ती थी। धीरे धीरे ही सही, उसकी नब्ज़ भी चल रही थी। 

मनु जहां उसे हमारी देखभाल की जरूरत थी। उसे उस वक्त हमारी ज़रूरत थी। उसे थोड़ा समय देने की जरूरत थी। हमने क्या किया? जल्द से जल्द चाहा कि उसकी पहचान ख़त्म कर दी जाए। हमने अपनी सारी शक्ति उस बेचारे पर निकाल दी। अपनी पूरी ताकत से कुल्हाड़ी चला दी उसके ऊपर।

अब देखिए! जीने की इच्छा किसे नहीं होती है। जीव-जन्तु, पेड़-पौधे सभी जीना चाहते हैं। 

यह जानते हुए भी यह शरीर नश्वर है। सभी को एक दिन जाना है। कोई रूक पाया है भला। यह संसार तो धर्मशाला है। स्थायी कमरा किसी के पास नहीं है। सभी कुछ दिनों के ही तो मेहमान है।

वो भी कोई अपवाद नहीं था। पर ज़िन्दगी उसकी शेष थी अभी । फिर से उठ खड़ा होने की कोशिश की उसने। अपनी शक्ति को एक जगह केन्द्रित किया। जिजीविषा उसकी देखने लायक थी। धीरे-धीरे उसकी

 हालत में सुधार आने लगा। अब सूखे हुए, बिल्कुल ठूंठ बन चुके पेड़ में थोड़ी हरकतें होने लगी। धड़कनें सुनाई देने लगीं। पुतलियों में भी हरकतें होने लगी। हमें भी हमारी गलती का अहसास अब हो चला था। अपनी करनी पर हमें पछतावा हो रहा था। हमारी सेवा-सुश्रुषा और उसकी जिजीविषा ने रंग दिखाया। अब लगभग सामान्य सी जिन्दगी जी रहा है मनु वो। अब उस पेड़ पर फिर से फल लगेंगी । फिर से हवाएं चलेंगी और उसकी डालियों के साथ अठखेलियां करेंगी। इस बार न्यायप्रिय धर्मराज शायद वक्त से पहले उसे नहीं बुलाएंगे। जब तक कमान नहीं कटेगी हवाएं भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगी। वैसे माध्यम हमेशा बदलता रहता है। चिन्ता छोड़ें स्वस्थ रहें,मस्त रहें और व्यस्त रहें।


समय महत्वपूर्ण है, क्यूं व्यर्थ की चिन्ता करते हो। शरीर तो नश्वर है। मिट्टी का शरीर है अपना, मिट्टी में ही मिल जाना है।

✒ मनीश वर्मा'मनु'




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